विजुअल मीडिया जिस तेजी से उभरी थी उसी तेजी से एक्सपोज भी हो गई। इसके विपरीत प्रिंट का डंका अभी भी बज रहा है। आज विजुअल में कौन सा ऐसा न्यूज चैनल है जिसे रत्ती भर भी निष्पक्ष कहा जा सकता है? या तो विजुअल मीडिया में मोदी की चाटुकारिता हो रही है या सोनिया एंड कंपनी की। दोनों तरह की चापलूसी में होड़ मची है और तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर परोसा जा रहा है। अब देखिए कितनी तेजी से वे चेहरे बदल दिए गए जो डिबेट में निष्पक्ष रुख अख्तयार किया करते थे। अब वही चेहरे हर चैनल पर दीखते हैं जिनकी सिफारिश या तो अशोक रोड से की जाती है अथवा अकबर रोड से। मजे की बात कि ये दोनों शासक (अशोक और अकबर) सेकुलर थे और सिफारिशें हद दरजे के कम्युनल 'ए' और कम्युनल 'बी' लोगों की आ रही है। अब हम सरीखे निष्पक्ष और निर्भय लोग बाहर हैं। मगर अखबारों में ऐसा नहीं है। वहां एक संतुलित माहौल रहता है। इसकी वजह है कि अखबारों ने तो 1975 से 1977 का वह दौर देखा है जब 'इंडिया' का मतलब 'इंदिरा' हो गया था। तब भी वे निष्पक्ष भाव से खड़े रहे तो अब क्या! यूं भी जल्द ही विजुअल मीडिया में सोशल मीडिया अव्वल हो जाएगी और न्यूज चैनल चौबीसो घंटे बस 'कामेडी विद कपिल' या 'चर्च में उस गोरे का भूत' दिखाया करेंगे।
Author: Shambhunath Shukla
Author: Shambhunath Shukla
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